मोदी सरकार अब कितने दिनों की मेहमान है?

नेहरू जी को छोड़ दें तो शायद मोदी आज़ाद भारत के एकमात्र नेता रहेंगे जो अपराजेय रहे जब जनता सीधे उनको चुन या रिजेक्ट कर रही थी। ये एक विशिष्ट उपलब्धि इसलिए है क्योंकि उनका चुनाव 80% लोगों से शुरू होता है, 20% मुस्लिम आबादी में से मोदी को एक भी वोट नही मिलता। मज़ेदार बात ये है कि आज तक भारत का कोई प्रधानमंत्री 50% वोट नही पा सका। नेहरू भी जिनके खिलाफ कोई विपक्ष ही नही था वो भी 48% पर ही रुक गए, इंदिरा गांधी तो अपने चरम पर भी 43% पा सकी । जबकि नेहरू को तो खुद गांधी ने चुना था, इंदिरा गांधी को परिवार से होने का फायदा मिला। मोदी खुद के दम पर नीचे से उपर आए और 45% जनता की पसन्द बने।

 राजनेताओं को वोट के लिए ड्रामेबाज़ी तो करनी ही पड़ती है।नेहरू जी चुनावों में जनसंघ पर इल्ज़ाम लगाते थे कि इन्होंने गांधी को मारा जबकि अदालत से कभी कुछ सिद्ध नही हुआ था। इंदिरा गांधी हमेशा विक्टिम कार्ड खेलती रही, भाषणों में बोलती रही कि ये लोग मुझे मार डालेंगे( आपरेशन ब्लू स्टार के भी बहुत पहले से)। मोदी भी इस कला में माहिर हैं। अभी उत्तरप्रदेश चुनावों की बड़ी चर्चा है, मोदी की रैलियां शुरू होते ही असली खेला होगा। जिधर भी भाजपा के पास थोड़ा भी अच्छा मुख्यमंत्री हो उधर मोदी का जादू चलता है। चाहे बिहार हो या असम या महाराष्ट्र या मध्य प्रदेश। योगी जी तो खुद ही इतने पसन्द किये जा रहे हैं। किसानों के लिए आंसू बहाने से लेकर विपक्षियों को घेरने तक सब कुछ उत्तरप्रदेश चुनाव प्रचार में देखने मिलेगा। कोरोना से वाकई लोगों को समस्या हुई पर इसका जिम्मेदार अधिकतर लोग मोदी को नही मानते। 

आपातकाल के 2 साल बाद इंदिरा गांधी फिर से चुनाव जीत गई, कोरोना का भी असर चुनावों पर नगण्य ही रहेगा। मोदी की सबसे बड़ी बात ये है कि वो काजल की कोठरी में भी बेदाग हैं। आज तक उनपर भृष्टाचार का कोई आरोप नही लगा बल्कि भाजपा के अभी जो शीर्ष के 10 नेता हैं उन पर भी कोई आरोप नही है जबकि सोनिया, राहुल गांधी खुद जमानत पर हैं। भाजपा में कभी परिवारवाद भी नही पनपता, कुछ लोगों के बच्चे सांसद ज़रूर हैं पर लालू या मुलायम के जैसे सीधे अपनी गद्दी नही दे दी जाती। राजनाथ सिंह का बेटा कोई छोटा- मोटा मंत्री भी नही है। मोदी सरकार मेहमान नही बल्कि मेज़बान है। 2029 तक तो मोदी सरकार रहेगी ही।

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