हिंदी में घुसती इंग्लिश .....!!

हिंदी में  घुसती इंग्लिश 
किसी ने सही कहा है ....
हीट  को   ताप कहने में।
यू    को   आप कहने में।
स्टीम को  भाप कहने में।
फादर को बाप कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
बैड   को   ख़राब कहने में।
वाईन  को  शराब कहने में। 
बुक  को  किताब कहने में।
साक्स को ज़ुराब कहने में।
क्या दिक्कत है ?
डिच   को  खाई  कहने में।
आंटी  को   ताई  कहने में।
बार्बर   को   नाई  कहने में।
कुक को हलवाई कहने में।
क्या दिक्कत है ?
इनकम  को आय कहने में।
जस्टिस को न्याय कहने में।
एडवाइज़ को राय कहने में।
टी को चाय कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
फ़्लैग  को  झंडा कहने में।
स्टिक  को  डंडा कहने में।
कोल्ड  को ठंडा कहने में।
ऐग    को  अंडा कहने में।
क्या दिक्कत है ?
बीटिंग  को कुटाई कहने में।
वॉशिंग को धुलाई कहने में।
पेंटिंग   को  पुताई कहने में।
वाइफ  को लुगाई कहने में।
क्या दिक्कत है ?
स्मॉल को छोटी कहने में।
फ़ैट   को  मोटी कहने में।
टॉप  को  चोटी कहने में।
ब्रेड   को   रोटी कहने में।
क्या दिक्कत है ?
ब्लैक   को   काला कहने में।
लॉक   को    ताला कहने में।
बाउल   को प्याला कहने में।
जेवलीन को भाला कहने में।
क्या दिक्कत है ?
गेट   को   द्वार कहने में।
ब्लो  को   वार कहने में।
लव  को  प्यार कहने में।
होर को छिनार कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
लॉस को घाटा कहने में।
मील को आटा कहने में।
फार्क को  काँटा कहने में।
स्लैप को चाँटा कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
टीम   को    टोली कहने में।
रूम   को   खोली कहने में।
पैलेट   को  गोली कहने में।
ब्लाउज़ को चोली कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
ब्रूम   को   झाडू कहने में।
हिल  को पहाड़  कहने में।
रोर को  दहाड़ कहने में।
जुगाड़ को जुगाड़ कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
नाईट  को  रात कहने में।
कास्ट  को जात कहने में।
टॉक   को  बात कहने में।
किक  को लात कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
सन  को   संतान कहने में।
ग्रेट   को   महान कहने में।
मैन  को   इंसान कहने में।
गॉड को भगवान कहने में।
 क्या दिक्कत है ?
     आजकल हिंदी साहित्य में इंग्लिश की घुसपैठ हो गई है और लेखक भी इसे स्वीकारने लगे हैं। लेकिन क्या किसी अन्य भाषा में कभी हिंदी के शब्दों को आपने पढ़ा है? फिर हिन्दी साहित्य के साथ ऐसा क्यों? हां लेकिन एक बात कहना चाहूंगी‌ कि हिंदी साहित्य को विधि शैली इत्यादि की बेड़ियों में जकड़ना छोड़ना होगा। अच्छे विचारों से ओत-प्रोत रचनाओं का होना ही काफ़ी है।भाषा को सरल और जनमानस का बनाना होगा ताकि युवा पीढ़ी भी आसानी से समझ सके लेकिन हिंदी साहित्यकारों के अहम की वजह से हिंदी भाषा कईं बेड़ियों में जकड़ी गई है। याद रखिए हमें पाठकों के लिए लिखना है न कि अपने आसपास के साहित्यकारों के लिए इसलिए हिंदी को सरल बनाएं। तभी हिंदी की लोकप्रियता बढ़ेगी परंतु इंग्लिश की घुसपैठ को स्वीकारने का मैं विरोध करता हूं। जय श्री कृष्णा

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