आज़ादी- मेरी नज़र में
लो जी हमने आज़ादी के 70 साल पुरे कर लिए हैं लेकिन क्या हम आज भी पूरी तरह से आज़ाद हो पाएं हैं ? जिस स्वतंत्र भारत का सपना आज़ादी की लड़ाई के दौरान क्रांतिकारियों ,वीरों, गाँधी, बोस जी आदि लोगो ने देखा था क्या वह साकार हुवा है या होता दिख रहा है ? मुझे तो ऐसा नहीं लग रहा है की हमारा देश आज भी पूरी तरह से स्वतंत्र हो पाया है। आज १५ अगस्त के दिन मैं जो विचार व्यक्त करने जा रहा हूँ कुछ लोगों को यह शायद ठीक न लगे लेकिन कोई बात नहीं क्या फर्क पड़ता है।
भारत ऐसा देश है जहाँ एक अच्छी नौकरी पाने के लिए यहाँ की मुख्या भाषा नहीं बल्कि उस भाषा का जानना अनिवार्य है जिसके भाषी लोगों ने भारत को २०० सालों तक लूटा,जी हाँ बिलकुल ठीक समझे आप मैं बात कर रहा हूँ अंग्रेजी भाषा की। ये भारत का दुर्भाग्य है की यहाँ आज भी अंग्रेजी का महत्व हमारी राष्ट्र भाषा से ज्यादा है। आज हमारे देश में यदि कोई व्यक्ति दफ्तरों में ,बड़ी बड़ी कंपनियों में बॉस आदि के सामने हिंदी में बात करे तो बहुत सारे लोग उसे गंवार समझते हैं और उसकी आलोचना भी करते हैं। एक हिंदी भाषी को कम तवज्जो दिया जाता है जबकि अंग्रेजी वाले को लोग सर पर बैठा लेते हैं व उसी के गुण गाते हैं। हमारी राष्ट्र भाषा की ऐसी हालत तो यही कहती है की हम आज भी संपूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हुए।
आज़ादी के ७० वर्ष बाद भी हमारे देश में लगभग ३०% लोगों को एक वक़्त का खाना ही नसीब होता है। हमारे देश में नेताओं द्वारा जनता का पैसा अपने स्वार्थ के लिए लुटाया जाता है और इन सब में हमारे देश की सुप्रीम कोर्ट ,हाई कोर्ट ये सब भी उनका ही साथ देते हैं,उनके ही पक्ष में फैसला देते हैं। हमारे देश का सिस्टम ही ऐसा है यहाँ कोई भी गुनाह करने के बाद भी आसानी से सजा से बच सकता है बस उसके पास पैसा होना चाहिए।
हमारे प्यारे भारत देश की लगभग ६०% जनसंख्या युवा है ,यहाँ पर युवा ही सबसे ज्यादा पीड़ित है क्योकि हमारे देश में उनके लिए रोजगार नहीं है। अब ये भला कैसी आज़ादी हुई ? जिसपर देश का भविष्य टिका हो ,जिसकी देश में बाहुल्यता हो वही यहाँ पर दर दर भटक रहा है वही ठोकरे खा रहा है तो फिर हम आज़ाद कहाँ हुए?
सिर्फ दो दिन (१५ अगस्त और २६ जनवरी) के दिन प्रोफाइल पर तिरंगा लगा लेने से ये साबित नहीं होता है की हम अब भी पूरी तरह से आज़ाद हैं। सच्चाई तो यह है की हम आज भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं लेकिन वो जंजीर हमें दिख नहीं रही है।
अब बात करते हैं देश भक्ति की ,आज १५ अगस्त के दिन हम अपने आस पास देखे होंगे लोगों को तिरंगा लगाए हुए , प्रोफाइल पर तिरंगा लगाए हुए लेकिन कल से आप देखेंगे कि यही लोग तिरंगे को रास्ते पर फेंक देंगे , तब इनको कोई मतलब नहीं रहेगा तिरंगे से इनकी देश भक्ति बस १ दिन के लिए बाकि दिनों में ये लोग सिर्फ ५२ सेकण्ड्स के लिए राष्ट्रगान के सम्मान में भी नहीं खड़े होते। राष्ट्रगान के लिए ५२ सेकंड इनको भारी लगता है लेकिन अभी अगर कोई लड़की इन्हे घंटों खड़ा रहने को कह दे तब देखो इनको सारा सम्मान वही दिख जायेगा। अभी कुछ महीनो पहले सरकार ने एक प्रस्ताव पारित किया कि सिनेमाहालों में पिक्चर शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाना अनिवार्य होगा , शुरुआत में काफी सारे लोगों ने इसका विरोध किया लेकिन अंततः हमारे सुप्रीमकोर्ट ने भी राष्ट्रगान अनिवार्य कर दिया। कुछ दिनों पहले मै एक ब्लॉग पढ़ रहा था उसमें एक लेखिका ने इस बात पर सवाल उठाया था और उसने ये लिखा था की वह मूवी देखने जाने पर राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना जरुरी नहीं समझती ,इसके सन्दर्भ में उसने काफी तर्क भी दिए थे। ऐसे लेखकों से मैं यही कहूंगा की तुम जैसों का इस देश रहना भी जरुरी नहीं है जब तुम सिर्फ ५२सेकण्ड्स के लिए देश के राष्ट्रगान को सम्मान नहीं दे सकती हो।
इस लेख को लिखने का मेरा मकसद यही है कि हमें झूठ के दिखावे से बचना चाहिए क्योकि हम जबतक खुद को नहीं देखेंगे तबतक हम विकास के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकते। वो कहते हैं न कि लोग आईने में देखा न करते गर उनकी असली तस्वीर दिखती तो। अतः आप सबसे निवेदन है की इन सबसे बचे व देश के प्रति वैसा ही सम्मान हमेशा रखें जैसा १५ अगस्त और २६ जनवरी को रखते हैं। देश के विकास में सरकार का साथ दें विदेशी वस्तुओं का प्रयोग न करें या कम करें,अपने आसपास साफ़ सफाई रखें और एक स्वच्छ ,समृद्ध भारत का जो सपना हमारे महापुरुषों ,क्रांतिकारिओं ,वीरों ने देखा था , उसको साकार करें।
अंत में आप सभी को मेरी तरफ से हमारे राष्ट्रीय पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ,जय हिन्द ,जय हिन्द के लोग ,जय भारत।
भारत ऐसा देश है जहाँ एक अच्छी नौकरी पाने के लिए यहाँ की मुख्या भाषा नहीं बल्कि उस भाषा का जानना अनिवार्य है जिसके भाषी लोगों ने भारत को २०० सालों तक लूटा,जी हाँ बिलकुल ठीक समझे आप मैं बात कर रहा हूँ अंग्रेजी भाषा की। ये भारत का दुर्भाग्य है की यहाँ आज भी अंग्रेजी का महत्व हमारी राष्ट्र भाषा से ज्यादा है। आज हमारे देश में यदि कोई व्यक्ति दफ्तरों में ,बड़ी बड़ी कंपनियों में बॉस आदि के सामने हिंदी में बात करे तो बहुत सारे लोग उसे गंवार समझते हैं और उसकी आलोचना भी करते हैं। एक हिंदी भाषी को कम तवज्जो दिया जाता है जबकि अंग्रेजी वाले को लोग सर पर बैठा लेते हैं व उसी के गुण गाते हैं। हमारी राष्ट्र भाषा की ऐसी हालत तो यही कहती है की हम आज भी संपूर्ण रूप से स्वतंत्र नहीं हुए।
आज़ादी के ७० वर्ष बाद भी हमारे देश में लगभग ३०% लोगों को एक वक़्त का खाना ही नसीब होता है। हमारे देश में नेताओं द्वारा जनता का पैसा अपने स्वार्थ के लिए लुटाया जाता है और इन सब में हमारे देश की सुप्रीम कोर्ट ,हाई कोर्ट ये सब भी उनका ही साथ देते हैं,उनके ही पक्ष में फैसला देते हैं। हमारे देश का सिस्टम ही ऐसा है यहाँ कोई भी गुनाह करने के बाद भी आसानी से सजा से बच सकता है बस उसके पास पैसा होना चाहिए।
हमारे प्यारे भारत देश की लगभग ६०% जनसंख्या युवा है ,यहाँ पर युवा ही सबसे ज्यादा पीड़ित है क्योकि हमारे देश में उनके लिए रोजगार नहीं है। अब ये भला कैसी आज़ादी हुई ? जिसपर देश का भविष्य टिका हो ,जिसकी देश में बाहुल्यता हो वही यहाँ पर दर दर भटक रहा है वही ठोकरे खा रहा है तो फिर हम आज़ाद कहाँ हुए?
सिर्फ दो दिन (१५ अगस्त और २६ जनवरी) के दिन प्रोफाइल पर तिरंगा लगा लेने से ये साबित नहीं होता है की हम अब भी पूरी तरह से आज़ाद हैं। सच्चाई तो यह है की हम आज भी गुलामी की जंजीरों में जकड़े हुए हैं लेकिन वो जंजीर हमें दिख नहीं रही है।
अब बात करते हैं देश भक्ति की ,आज १५ अगस्त के दिन हम अपने आस पास देखे होंगे लोगों को तिरंगा लगाए हुए , प्रोफाइल पर तिरंगा लगाए हुए लेकिन कल से आप देखेंगे कि यही लोग तिरंगे को रास्ते पर फेंक देंगे , तब इनको कोई मतलब नहीं रहेगा तिरंगे से इनकी देश भक्ति बस १ दिन के लिए बाकि दिनों में ये लोग सिर्फ ५२ सेकण्ड्स के लिए राष्ट्रगान के सम्मान में भी नहीं खड़े होते। राष्ट्रगान के लिए ५२ सेकंड इनको भारी लगता है लेकिन अभी अगर कोई लड़की इन्हे घंटों खड़ा रहने को कह दे तब देखो इनको सारा सम्मान वही दिख जायेगा। अभी कुछ महीनो पहले सरकार ने एक प्रस्ताव पारित किया कि सिनेमाहालों में पिक्चर शुरू होने से पहले राष्ट्रगान चलाना अनिवार्य होगा , शुरुआत में काफी सारे लोगों ने इसका विरोध किया लेकिन अंततः हमारे सुप्रीमकोर्ट ने भी राष्ट्रगान अनिवार्य कर दिया। कुछ दिनों पहले मै एक ब्लॉग पढ़ रहा था उसमें एक लेखिका ने इस बात पर सवाल उठाया था और उसने ये लिखा था की वह मूवी देखने जाने पर राष्ट्रगान के सम्मान में खड़ा होना जरुरी नहीं समझती ,इसके सन्दर्भ में उसने काफी तर्क भी दिए थे। ऐसे लेखकों से मैं यही कहूंगा की तुम जैसों का इस देश रहना भी जरुरी नहीं है जब तुम सिर्फ ५२सेकण्ड्स के लिए देश के राष्ट्रगान को सम्मान नहीं दे सकती हो।
इस लेख को लिखने का मेरा मकसद यही है कि हमें झूठ के दिखावे से बचना चाहिए क्योकि हम जबतक खुद को नहीं देखेंगे तबतक हम विकास के रास्ते पर आगे नहीं बढ़ सकते। वो कहते हैं न कि लोग आईने में देखा न करते गर उनकी असली तस्वीर दिखती तो। अतः आप सबसे निवेदन है की इन सबसे बचे व देश के प्रति वैसा ही सम्मान हमेशा रखें जैसा १५ अगस्त और २६ जनवरी को रखते हैं। देश के विकास में सरकार का साथ दें विदेशी वस्तुओं का प्रयोग न करें या कम करें,अपने आसपास साफ़ सफाई रखें और एक स्वच्छ ,समृद्ध भारत का जो सपना हमारे महापुरुषों ,क्रांतिकारिओं ,वीरों ने देखा था , उसको साकार करें।
अंत में आप सभी को मेरी तरफ से हमारे राष्ट्रीय पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं ,जय हिन्द ,जय हिन्द के लोग ,जय भारत।
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