मन अविरल by Manshi Kumari

मन अविरल by Manshi Kumari -

मन कभी उड़ता भँवर,मन कभी चहकता सँवर भर जोश मन कहीं चले चूमने गगन|
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कभी खुली किताब बन हर पन्ने को हीरे 💎सा तराशने को कहे बस ये हर उम्र को टटोलता है चले|


कभी आग सी भड़क तो कभी शीतलता सी ठंड़क बस उम्र भर कुछ ढूढ़ता ही चले|


कभी अनश्वर सा ऊबन तो कभी बचपन सा चंचल तो कभ प्रित की चाह में भटकता चमन|
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कभी गुलाब सा सुगंध पसंद तो कहीं कांटे सा फूल नापसंद ना ही ठौर ठहर तू बस अविरल मन बस यूँ ही चलता चल|


लक्ष्य की चाह में जिद्दी बन ऊबनपन से तू ऊबर मानवीय भाव से बस परिपूर्ण बन तू एक मेरा धुन बन।।
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