कॉलेज लाइफ की एक घटना........By पराग त्रिपाठी

पाओलो कोएल्हो ने अपनी जग प्रसिद्ध किताब अलकेमिस्ट में कहा है :
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click here "जब आप किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहते हैं तो पूरी कायनात उसे आपको दिलाने में जुट जाती है।" कंफ्यूजीआईए नहीं, ओम शांति ओम में इसी डॉयलॉग की सस्ती कॉपी शाहरुख से बुलवाई गयी थी। लेकिन बरसों पहले इसे लिखा पाओलो कोएल्हो ने था। अब ये डायलॉग इधर क्यों चस्पाया गया, ये आखिर में पता चल जाएगा।

तो बात तब की है जब अपन मेकैनिकल इंजीनियरिंग के तृतीय वर्ष में थे। एक विषय है जिसका मेकैनिकल के विद्यार्थियों बीच उतना ही डर था जितना गब्बर सिंह का रामगढ़ के वासियों में। वो विषय है डिज़ाइन या इंजीनियरिंग डिज़ाइन या मशीन डिज़ाइन। ऊपर से कोरोना की लहर की तरह ये की ये हर सेम में डिज़ाइन, डिज़ाइन 1 फिर उसके बाद डिज़ाइन 2 एवं डिज़ाइन 3 के नाम से आता था। नाम के साथ जुड़े अंक के बढ़ने के साथ-साथ ये विषय उतना ही जानलेवा होता जाता था।
इस विषय में होता ये है कि कई आवश्यक डिटेल/ रिक्वायरमेंट/मटेरियल दिए जाते है प्रश्न में फिर उसके हिसाब से घनघोर गणितीय गणनाएं करके आपको वो पार्ट डिज़ाइन करना होता है। जैसे फैक्टरियों में दिखने वाले बड़े-बड़े बॉयलर, स्प्रिंग, गाड़ियों के ब्रेक, क्लच आदि-इत्यादि।

तो जिस सेम में ये घटना घटित हुई उस सेम में बॉयलर डिज़ाइन का एक प्रश्न होता था। जिसमे गणितीय समीकरण (ईक्वेशन) सुरसा के मुंह की भांति बढ़ती ही जाती थी। "X" की छठी पावर तक ये पहुंच जाती थी। इतनी भयंकर खौफनाक गणनाएं की कैलक्यूलेटर भी थक के त्यागपत्र दे देता था। 3 घण्टे में 5 प्रश्न हल करना होते थे। वो 3 घण्टे की बजाय 5 घण्टे का काम होता था ऊपर से एग्जाम के प्रेशर में। जब इंसान ऐसी घोर यातनाएं झेलके बाहर निकल जाए तो उसे ज़िंदगी की बाकी समस्याएं छोटी लगने लगती हैं। खैर…हमारे हाथ में परीक्षा प्रश्नपत्र आया। इन्विजिलेटर ने बंदूक से हवाई फायर किया और हम लोगों ने उसे सॉल्व करना शुरू किया। मैंने सोचा सबसे पहले बॉयलर वाले प्रश्न पर ही अटैक करता हूँ। हम दोनों (प्रश्न और मैं) ने एक दूसरे की आंखों में देखा। जिस तरह WWE में फाइट शुरू होने के पहले पहलवान एक दूसरे को देखते हैं। दोनों एक दूसरे को देखकर हंसे और द्वंद शुरू हुआ। मैं डाल-डाल तो वो पात-पात। इसी खींचा-तानी में 1 घण्टा निकल गया। इस तरह के प्रश्न एक दिन पहले मैं प्रैक्टिस में 40 मिनट में सॉल्व कर रहा था। अब एक घण्टा हो गया, उत्तर आने का नाम ही नहीं ले रहा था। मई के महीने की गर्मी उपर से ये द्वंद, माथे से पसीना मुंसिपालटी के लीक हुए नल की तरह टपक रहा था। 33% समय निकल गया और 20% प्रश्न पत्र भी हल नहीं हुआ। मैंने कुछ अपने मन से उत्तर लिखा और बीच की कुछ स्टेप गायब कर दी की शायद चेक करने वाले कि आंखों में धूल झोंक सकूं। फिर मैंने सोचा चलो दूसरे प्रश्न के रूप में एक सरल हेलिकल स्प्रिंग डिज़ाइन कर देता हूँ। मतलब ये सबसे सरल प्रश्नों में से होता है। मेरा उत्तर आया कि स्प्रिंग में आधा टर्न होगा। मतलब आप पुराने स्प्रिंग वाले बाल पेन की स्प्रिंग इमेजिन कीजिये उसमे कितने टर्न होते है। अब अगर कोई कहे कि सिर्फ आधा ही टर्न होगा स्प्रिंग में तो क्या ही कहना। इज़्ज़त बचाने के लिए मन से एक काल्पनिक नम्बर उत्तर के रूप में लिखा सोचा स्टेप मार्किंग के कुछ तो नम्बर मिल जाएंगे। फिर तीसरा प्रश्न ठीक बन गया। जैसे तैसे चौथा प्रश्न एटेम्पट किया। पांचवा शुरू किया कुछ स्टेप सॉल्व किये की समय पूरा होने के कारण कॉपी छीन ली गयी। जीवन में इतना लाचार, बेइज़्ज़त व बेचारा कभी फील नहीं किया था। मतलब "गज़ब बेइज़्ज़ती है यार" का सटीक उदाहरण था। बाहर आकर अलग-अलग सिनेरियो में नम्बर जोड़े। अगर बहुत लिबरल चेकिंग हुई तो 35 मार्क्स आने के चांस थे जो पास होने के लिए मिनिमम नम्बर थे। अब शुरू हुआ प्रार्थनाओं का दौर। सारे दोस्तों को उनके सभी ईष्ट देवी-देवताओं से प्रार्थना करने के आदेश जारी कर दिए गए। उस पूरे एक महीने में मैं घबराए-घबराए घूमता रहा। इंदौर के सारे मंदिरों में माथा टेक आया। भगवान बस इस बार बेड़ा पार लगा दे, अगली बार से मैं पूरे सेम पढ़ाई करूंगा, सच्ची मैं; विद्या कसम। अब आया जजमेंट डे। जिस दिन कॉलेज में "क्रॉस लिस्ट" लगती थी। ये भी कॉलेज वालों की बच्चों को बेइज़्ज़त करने की अनोखी अदा थी। क्रॉस लिस्ट में उन्हीं का नाम आता जो किसी विषय मे लुढ़क जाते। सिर्फ उस विषय का नाम और उसमे आये नम्बर, ज़ाहिर है जो 35 से कम होते थे। गर पास हो गए सभी विषय में तो क्रॉस लिस्ट में नाम नहीं।

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click here लोगों की यही प्रार्थना रहती की भगवान चाहे आतंकवादियों की हिट लिस्ट में नाम आ जाये पर क्रॉस लिस्ट में नाम नहीं आना चाहिए। खैर…सच्चे दिल से की हुई प्रार्थनाएं काम आयी और अंततः मेरा क्रॉस लिस्ट में नाम नहीं आया। लेकिन मन ही मन मे समझ गया कि बाबू एक्सएक्ट 35 मार्क्स आ गए। फाइनल मार्क लिस्ट जब आयी उसमे ठीक 35 मार्क्स थे। इसीलिए पाओलो कोएल्हो ने कहा था : "जब आप किसी चीज़ को पूरी शिद्दत से चाहते हैं तो पूरी कायनात उसे आपको दिलाने में जुट जाती है।"


Note-

This post written by Mr. पराग त्रिपाठी and he is completely own the rights of this post. Click here for his Instagram profile
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