क्या हिन्दुस्तान की राजनीति में से धर्म को निकाला जा सकता है?

मेरा मानना है नहीं निकाला जा सकता है क्योंकि हिंदुस्तान का निर्माण ही धर्म के आधार पर हुआ है, बंटवारा इसका उदाहरण है। हमारे ओरिजनल संविधान की नींव भी धर्म आधारित थी लेकिन कुछ लोगों की महत्वाकांक्षा, ध्रुवीकरण व तुष्टिकरण की राजनीति के कारण आज हिन्दुस्तान की राजनीति बहुत जटिल हो गई है। मेरा मानना है कि हिन्दुस्तान को सेक्युलर देश नहीं होना चाहिए था और शायद हमारी पहली संविधान सभा का भी यही मत था तभी उस सभा ने सर्वसम्मति से सेक्युलर शब्द को संविधान में शामिल नहीं किया था लेकिन अफसोस 1975–76 में इमरजेंसी लगाकर पूरे विपक्ष, मीडिया को जेलों में कैद करके देश पर जबरन सेक्युलर शब्द थोप दिया गया और लिबरल के टी शाह की सिफारिश पर आधे से ज्यादा संविधान को बदल दिया गया।

यहां ध्यान देने वाली बात ये भी है कि जब पहली संविधान सभा ने सेक्युलर प्रस्ताव रद्द किया था तो उसके पीछे एक तर्क ये भी था कि अगर हम देश को धर्म निरपेक्ष मानते हैं तो फिर जातिगत आरक्षण की अवधारणा क्यों?सभा के सदस्यों के सामने ये एक जटिल समस्या थी क्योंकि अगर सेक्युलर बनाया तो आरक्षण का विचार बदलना पड़ेगा जिससे उस समय की एक बहुत बड़ी जनसंख्या जोकि बहुत पिछड़ी थी, अधिकारों से वंचित रह जायेगी।अंततः धर्म निरपेक्षता का विचार सर्वसम्मति से रद्द हुआ और आरक्षण की पहल की गई।
आज की राजनीति में एक पार्टी तो ऐसी है जो अपने निर्माण से ही धर्म को भी अपनी राजनीति में उतनी ही वरीयता देती है जितनी कि अन्य मुद्दों को।इस पार्टी का मानना है कि धर्म के बिना जीवन व एक मजबूत राष्ट्र की कल्पना नहीं की जा सकती। ये सब उस पार्टी के नेता, प्रवक्ता शुरू से ही डिबेट्स में,अपने भाषणों में कहते आए हैं और जनता ने उनका साथ भी दिया है तभी वो पार्टी 3 सांसदों से शुरू होकर आज 303 सांसद देने वाली पार्टी है। वहीं दूसरी तरफ अन्य पार्टियां हैं जो अभी तक ये तय नहीं कर पा रहे कि उन्हें किस तरफ जाना है।2014 से पहले- जो कहते थे "धर्म विशेष की बेटियां ही हमारी बेटी,जो इफ्तार पार्टी में शिरकत किया करते थे,जिनके लिए देश के संसाधनों पर पहला हक धर्म विशेष के लोगों का है", वो आज मंदिर मंदिर भटक रहे हैं।उनको अपने धर्म विशेष के वोटबैंक की भी चिंता है तभी कभी जिन्ना को महान बता रहे हैं तो कभी स्वतंत्रता सेनानी उनकी रैलियों में कभी अजान हो रहा है,कभी जीजस लीला तो वो खुद कभी चंडी पाठ कर रहीं हैं।

एक नई प्रजाति हिन्दुस्तान की राजनीति में जन्मी है वो प्रजाति है फ्री स्कीम देने वाली प्रजाति। जी हां यहां मैं मिस्टर खांसीवाल अका दिल्ली के मालिक केजरीवाल की बात कर रहा हूं।ये एक अलग किस्म का बंदा है जिसके पास अपना राज्य छोड़कर बाकि हर राज्य की समस्याओं का समाधान है(ऐसा वो दावा करता है)। एक समय ये कहते थे कि राजनीति में नहीं आयेंगे फिर आ गये तो कहने लगे कि राजनीति बदलने आये हैं, शायद यही बदलाव किया कि सबकुछ फ्री बांटों और दूसरी तरफ से दंगे-फसाद,गंदा पानी इत्यादि देकर उससे ज्यादा वसूल भी लो।ये बंदा एक तरफ तो दावा करता है कि दिल्ली में स्वास्थ्य सुविधाएं बेहतर है इसलिए यूपी,बिहार के लोग ₹500 लेकर दिल्ली आते हैं और 5लाख तक का इलाज मुफ्त में कराकर चले जाते हैं, जबकि ये बंदा खुद अपना इलाज कराने कभी बैंगलोर,कभी जयपुर तो कभी गोवा के चक्कर लगाता रहता है।
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